(ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का संकलन)
बुद्ध एक ऐसे उत्तुंग शिखर है, जिसका आखिरी शिखर हमें दिखाई नहीं पड़ता। बस थोड़ी दूर तक हमारी आंखें जाती है। हमारी आंखों की सीमा है। थोड़ी दूर तक हमारी गर्दन उठती है। हमारी गर्दन के झुकने की सामर्थ्य है। और बुद्ध खोते चले जाते है—दूर....
हिमाच्छादित शिखर है। बादलों के पार, उनकी प्रांरभ तो दिखाई पड़ता है। उनका अंत दिखाई नहीं पड़ता। यही उनकी महिमा है। और प्रारंभ को जिन्होंने अंत समझ लिया, वे भूल में पड़ गए। प्रारंभ से शुरू करना लेकिन जैसे—जैसे तुम शिखर पर उठने लगोगे और आगे, और आगे दिखाई पड़ने लगेगा। और आगे दिखायी पड़ने लगेगा।
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