सोमवार, 31 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--23)-(भाग-3)

सत्संग—सौरभ—(प्रवचन—तेइसवां)




सारसूत्र:



यावजीवम्‍पि ते बालो पंडितं पयिरूपासति।
न सो धम्मं दब्बी सूपरसं यथा।।58।।


मुहुत्‍तमपि चे विज्‍यू पंडितं पयिरूपासिति।
खिप्‍पं धम्मं विजानाति जिव्‍हा सुरपरसं यथा।।59।।


चरंति बाला दुम्‍मेधा अमित्‍तेनेव अत्तना।
करन्‍तो पापकं कम्मं यं कटुकफ्फलं।।60।।


आज सत्संग की कुछ बात करें। इन सूत्रों में सत्संग की ही आधारशिला है। सत्संग से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ और नहीं है। अंधे को जैसे आंख मिल जाए, या गूंगे को जबान; या मुर्दा जैसे जग जाए और जीवित हो जाए, ऐसा सत्संग है। सत्संग का अर्थ है : तुम्हें पता नहीं है; किसी ऐसे का साथ मिल जाए जिसे पता है, तो जैसे तुम्हें ही पता हो गया; तो जैसे तुम्हारे हाथ में अंधेरे में मशाल आ गई।

रविवार, 30 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--22)-(भाग-3)

बुद्धि, बुद्धिवाद ओर बुद्ध—(प्रवचन—बाईसवां)



पहला प्रश्‍न:

      भगवान बुद्ध का मार्ग संदेह के स्वीकार से शुरू होता है। क्या उनका बग भी आज के युग जैसा ही बुद्धिवादी था, संदेहवादी था? और क्या आज के समय में धम्मपद सबसे ज्यादा प्रासांगिक है?


      नहीं——बुद्ध का युग तो बुद्धिवादी नहीं था; न ही संदेहवादी था। बुद्ध अपने समय से बहुत पहले पैदा हुए थे। अब ठीक समय था बुद्ध के लिए—पच्चीस सौ साल बाद।

      बुद्ध जैसे व्यक्ति सदा ही अपने समय के पहले होते हैं। जमाने को बड़ी देर लगती है उस जगह पहुंचने में, जो बुद्ध पुरुषों को पहले दिखाई पड़ जाता है। बुद्धत्व का अर्थ है देखने की ऊंचाइयां। जैसे कोई पहाड़ पर चढ़कर देखे, दूर सैकड़ों मील तक दिखाई पड़ता है। और जैसे कोई जमीन पर खड़े होकर देखे तो थोड़ी ही दूर तक आंख जाती है।


      बुद्ध पुरुष सदा ही अपने समय के पहले होते हैं। और इसलिए बुद्ध पुरुषों को सदा ही उनका समय, उनका युग इंकार करता है, अस्वीकार करता है। बुद्ध ने जो बातें कहीं हैं, अभी भी उनके लिए पूरा—पूरा समय नहीं आया। कुछ आया है अभी भी पूरा नहीं आया।

शनिवार, 29 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--21)-(भाग-3)

बाल—लक्षण—(प्रवचन—इक्‍कीसवां)    




 सारसूत्र:


दीघा जागरतो रत्ति दीघं संतस्स योजना।

दीखे बालानं संसारो सद्धम्मे अविजानतं।।54।।


चरं वे नाधिगच्छेथ्व सेथ्यं सादिसमत्तनो।

एकचरियं दत्हं कयिरा नत्थि बाले सहायता।।55।।


पुत्‍तामत्‍थि धनम्मत्थि इति बालो विहज्‍जति।

अत्ता अत्तनो नत्थि कुतो पुत्‍तो कुत्‍तो धनं।।56।।



के बालो मज्जति बाल्यं पंडितो वापि तेन सो।

बाले व पंडितमानी स वे वालो'ति बुच्‍चति।।57।।


      संसार बडा है, विशाल है। लंबी है यात्रा उसकी। लेकिन संसार के करण संसार बड़ा नहीं हैं; संसार बड़ा है, क्‍योंकि तुम बेहोश हो। तुम्‍हारी बेहोशी में ही संसार का  विस्तार है। तुम्हारी बेखुदी में ही संसार की विराटता है। जैसे ही तुम जागे, वैसे ही संसार छोटा हुआ। इधर तुम जागे, उधर संसार खोना शुरू हुआ। जिस दिन परिपूर्ण रूप से कोई जागता है, संसार शून्य हो जाता है।

शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

एस धम्‍मो सनंतनो (भाग—3)



 (ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्‍मपद पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का संकलन)


 बुद्ध एक ऐसे उत्‍तुंग शिखर है, जिसका आखिरी शिखर हमें दिखाई नहीं पड़ता। बस थोड़ी दूर तक हमारी आंखें जाती है। हमारी आंखों की सीमा है। थोड़ी दूर तक हमारी गर्दन उठती है। हमारी गर्दन के झुकने की सामर्थ्‍य है। और बुद्ध खोते चले जाते है—दूर....

हिमाच्‍छादित शिखर है। बादलों के पार, उनकी प्रांरभ तो दिखाई पड़ता है। उनका अंत दिखाई नहीं पड़ता। यही उनकी महिमा है। और प्रारंभ को जिन्‍होंने अंत समझ लिया, वे भूल में पड़ गए। प्रारंभ से शुरू करना लेकिन जैसे—जैसे तुम शिखर पर उठने लगोगे और आगे, और आगे दिखाई पड़ने लगेगा। और आगे दिखायी पड़ने लगेगा।


एस धम्‍मो सनंतनो (भाग—3)

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--20)-(भाग-2)

प्रेम की आखिरी मंजिल: बुद्धो से प्रेम—(प्रवचन—बीसवां)




पहला प्रश्‍न:


जिन भिक्षुओं ने बुद्ध की मूर्तियां बनायीं और बुद्ध-वचन के शास्त्र लिखे, क्या उन्होंने बुद्ध की आज्ञा मानी? क्या वे उनके आज्ञाकारी शिष्य थे?


बुद्ध की आज्ञा तो उन्होंने नहीं मानी, लेकिन मनुष्य पर बड़ी करुणा की। और बुद्ध की आज्ञा तोड़ने जैसी थी, जहां मनुष्य की करुणा का सवाल आ जाए। ऐसे उन्होंने बुद्ध की आता तोड़कर भी बुद्ध की आशा ही मानी। क्योंकि बुद्ध की सारी शिक्षा करुणा की है।

      इसे थोड़ा समझना पड़ेगा।

      बुद्ध ने कहा मेरी मूर्तियां मत बनाना, तो जिन्होंने मूर्तियां बनायीं उन्होंने बुद्ध की आता तोड़ी। लेकिन बुद्ध ने यह भी कहा कि जो ध्यान को उपलब्ध होगा, समाधि जिसके जीवन में खिलेगी, उसके जीवन में करुणा की वर्षा भी होगी।

तो जिन्होंने मूर्तियां बनायीं उन्होंने करुणा के कारण बनायीं। बुद्ध के चरण-चिह्न खो न जाएं, और बुद्ध के चरण-चिह्नों की छाया अनंत काल तक बनी रहे।


      कुछ बात ही ऐसी थी कि जिस आदमी ने कहा मेरी मूर्तियां मत बनाना, हमने

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--19)-(भाग-2)

जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश (प्रवचन—उन्‍नीसवां)



सारसूत्र:

चंदन कार वापि उप्पल अथ वस्सिकी।
एतेसं गंधजातान सीलगधो अनुत्‍तरो।।49।।

अणमत्तो अयं गंधो’ या यं तगरचंदनी।
यो च सीलवतं गंधों वाति देवेतु उत्तमो।।50।।

तेसं संपन्नसीलान अप्पमादविहारिनं।
सम्मदज्जा विमुत्‍तानं मारो मागं न विदति।।51।।

यथा संकारधानस्मिं उज्‍झितस्मिं महापथे।
पदुमं तत्थ जायेथ सुचिगंध मनोरमं।।52।।

एवं संकारभूतेसु अंधभूते पुथुज्‍जने।
अतिरोचति पज्जाय सम्‍मासंबुद्धसावको।।53।।


      सिवा इसके और दुनिया में क्या हो रहा है
      कोई हंस रहा है कोई रो रहा है
      अरे चौंक यह ख्वाबे-गफलत कहां तक
      सहर हो गई है और तू सो रहा है

      निद्रा है दुर्गंध। जाग जाना है सुगंध। जो जागा, उसके भीतर न केवल प्रकाश के दीए जलने लगते हैं, वरन सुगंध के फूल भी खिलते हैं। और ऐसी सुगंध के जो फिर कभी मुरझाती नहीं। सदियां बीत जाती हैं, कल्प आते हैं और विदा हो जाते हैं, लेकिन जीवन की सुगंध अडिग और थिर बेनी रहती है। नाम भी शायद भूल जाएं कि किसकी सुगंध है, इतिहास पर स्मृति की रेखाएं भी न रह जाएं, लेकिन सुगंध फिर भी जीवन के मुक्‍त। आकाश में सदा बनी रहती है।

बुधवार, 26 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--18)-(भाग-2)

प्रार्थना: प्रेम की पराकाष्ठा—(प्रवचन—अट्ठारवां)



पहला प्रश्न :


बुद्ध बातें करते हैं होश की, जागने की, और आप बीच-बीच में मस्ती, नशा, शराब और लीनता की बातें भी उठाया करते हैं। बुद्ध पर बोलते समय विपरीत की चर्चा क्यों आवश्यक है? कृपया समझाएं।



      दृष्‍टि न हो, तो विपरीत दिखाई पड़ता है। दृष्टि हो, तो जस भी विपरीत दिखाई न पड़ेगा। जिसको बुद्ध होश कहते हैं, उसी को सूफियों ने बेहोशी कहा। जिसको बुद्ध अप्रमाद कहते हैं, उसी को भक्तों ने शराब कहा। बुद्ध के वचनों में और उमर खैयाम में इंचभर का फासला नहीं। बुद्ध ने जिसे मंदिर कहा है, उसी को उमर खैयाम ने मधुशाला कहा। बुद्ध तो समझे ही नहीं गए उमर खैयाम भी समझा नहीं गया। उमर खैयाम को लोगों ने समझा कि शराब की प्रशंसा कर रहा है।


      कुछ अपनी करामात दिखा ए साकी

      जो खोल दे आंख वो पिला ए साकी

      होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या

      दीवाने को होशियार बना ए साकी

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--17)-(भाग2)

प्रार्थना स्वयं मंजिल—(प्रवचन—सत्रहवां)



सारसूत्र:


 न परेस विलोमनि न परेस कताकतं।

अत्‍तनो’ वअवेक्‍खेय्य कतानि अकतानि च।।44।।


यथापि रूचिरं पुष्‍फं वण्‍णवंतं अगंधकं।

एवं सुभाषिता वाचा अफला होति अकुब्‍बतो।।45।।


यथापि रूचिरं पप्‍फं वण्‍णवंतं सगंधकं।

एवं सुभाषिता वाचा सफला होती कुब्‍बतो।।46।।


यथापि पुप्‍फरासिम्‍हा कयिरा मालागुणे बहु।

एवं जातेन मच्‍चेन कत्‍तव्‍वं कुसलं।।47।।


न पुप्‍फगंधो पटिवातमेति न चंदनं तगरं मल्‍लिका वा।

सतज्‍व गंधो पटिवातमेति सब्‍बा दिसा सप्‍पुरिसो पवाति।।48।।

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--16)-(भाग-2)

समझ और समाधि के अंतरसूत्र—(प्रवचन—सौहलवां)




पहला प्रश्न :


      महाकाश्यप उस दिन सुबह खिलखिलाकर न हंसा होता, तो भी क्या बुद्ध उसे मौन के प्रतीक फूल को देते?


प्रश्‍न पूछते समय थोड़ा सोचा भी करें कि प्रश्न का सार क्या है। यदि ऐसा हुआ होता! यदि वैसा हुआ होता! इन सारी बातों में क्यों व्यर्थ समय को व्यतीत करते हो?

      महाकाश्यप न हंसा होता तो बुद्ध फूल देते या न देते, इससे तुम्हें क्या होगा?

      महाकाश्यप न भी हुआ हो, हुआ हो, कहानी सिर्फ कहानी हो, तो भी तुम्हें क्या होगा? कुछ अपनी पूछो। कुछ ऐसी बात पूछो जो तुम्हारे काम पड़ जाए। प्रश्न ऐसे न हों कि सिर्फ मस्तिष्क की खुजलाहट हों, क्योंकि खुजलाहट का गुण है जितना खुजाओ बढ़ती चली जाती है।

पूछने के लिए ही मत पूछो। अगर न हो प्रश्न तो पूछो ही मत। चुप बैठेंगे, शायद तुम्हारे बीच कोई महाकाश्यप हंस दे।

      हंसना न हंसना महत्वपूर्ण नहीं है। बाहर जो घटता है उसका कोई मूल्य बुद्धपुरुषों के लिए नहीं है। फूल तो महाकाश्यप को दिया ही होता। वह अकेला ही था वहा जो बुद्ध के मौन को समझ सकता था। हर हालत में फूल उसके पास गया होता। बुद्ध न देते तो भी गया होता। छोड़ दो फिकर! हंसता नहीं, बुद्ध न भी देते फूल, तो भी मैं कहता हूं? उसी के पास गया होता। फूल खुद चला गया होता। कोई बुद्ध को देने की जरूरत भी न थी।

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--15)-(भाग-2)

केवल शिष्य जीतेगा—(प्रवचन—पंद्रहवां)



सारसूत्र:


को इमं पठविं विजेस्सति यमलोकज्‍च इमं सदेवकं।

को धम्मपद सुदेसितं कुसलो पुप्‍फमिव पचेस्सति।।39।।


सेखो पठविं विजेस्सति यमलोकज्‍च इमं सदेवकं।

सेखो धम्मपद सुदेसित कुसलो पुप्‍फमिव पचेस्सतिा।।40।।


फेणूपमं कायमिमं विदित्वा मरीचिधम्मं अभिसम्‍बुधाना।

छेत्वान मारस्स पुपुप्‍फ अदस्‍सनं मच्‍चुराजस्‍स गच्छे।।41।।


पुप्‍फ हेव पचिनतं व्यासत्तमनसं नरं।

सुत्‍तं गामं महोघोव मच्चु आदाय गच्छति।।42।।


यथापि भमरो पुप्‍फं वण्णगन्‍धं उहेठयं।

पलेति रसमादाय एवं गामे मुनिचरे।।43।।