शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--20)-(भाग-2)

प्रेम की आखिरी मंजिल: बुद्धो से प्रेम—(प्रवचन—बीसवां)




पहला प्रश्‍न:


जिन भिक्षुओं ने बुद्ध की मूर्तियां बनायीं और बुद्ध-वचन के शास्त्र लिखे, क्या उन्होंने बुद्ध की आज्ञा मानी? क्या वे उनके आज्ञाकारी शिष्य थे?


बुद्ध की आज्ञा तो उन्होंने नहीं मानी, लेकिन मनुष्य पर बड़ी करुणा की। और बुद्ध की आज्ञा तोड़ने जैसी थी, जहां मनुष्य की करुणा का सवाल आ जाए। ऐसे उन्होंने बुद्ध की आता तोड़कर भी बुद्ध की आशा ही मानी। क्योंकि बुद्ध की सारी शिक्षा करुणा की है।

      इसे थोड़ा समझना पड़ेगा।

      बुद्ध ने कहा मेरी मूर्तियां मत बनाना, तो जिन्होंने मूर्तियां बनायीं उन्होंने बुद्ध की आता तोड़ी। लेकिन बुद्ध ने यह भी कहा कि जो ध्यान को उपलब्ध होगा, समाधि जिसके जीवन में खिलेगी, उसके जीवन में करुणा की वर्षा भी होगी।

तो जिन्होंने मूर्तियां बनायीं उन्होंने करुणा के कारण बनायीं। बुद्ध के चरण-चिह्न खो न जाएं, और बुद्ध के चरण-चिह्नों की छाया अनंत काल तक बनी रहे।


      कुछ बात ही ऐसी थी कि जिस आदमी ने कहा मेरी मूर्तियां मत बनाना, हमने

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--19)-(भाग-2)

जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश (प्रवचन—उन्‍नीसवां)



सारसूत्र:

चंदन कार वापि उप्पल अथ वस्सिकी।
एतेसं गंधजातान सीलगधो अनुत्‍तरो।।49।।

अणमत्तो अयं गंधो’ या यं तगरचंदनी।
यो च सीलवतं गंधों वाति देवेतु उत्तमो।।50।।

तेसं संपन्नसीलान अप्पमादविहारिनं।
सम्मदज्जा विमुत्‍तानं मारो मागं न विदति।।51।।

यथा संकारधानस्मिं उज्‍झितस्मिं महापथे।
पदुमं तत्थ जायेथ सुचिगंध मनोरमं।।52।।

एवं संकारभूतेसु अंधभूते पुथुज्‍जने।
अतिरोचति पज्जाय सम्‍मासंबुद्धसावको।।53।।


      सिवा इसके और दुनिया में क्या हो रहा है
      कोई हंस रहा है कोई रो रहा है
      अरे चौंक यह ख्वाबे-गफलत कहां तक
      सहर हो गई है और तू सो रहा है

      निद्रा है दुर्गंध। जाग जाना है सुगंध। जो जागा, उसके भीतर न केवल प्रकाश के दीए जलने लगते हैं, वरन सुगंध के फूल भी खिलते हैं। और ऐसी सुगंध के जो फिर कभी मुरझाती नहीं। सदियां बीत जाती हैं, कल्प आते हैं और विदा हो जाते हैं, लेकिन जीवन की सुगंध अडिग और थिर बेनी रहती है। नाम भी शायद भूल जाएं कि किसकी सुगंध है, इतिहास पर स्मृति की रेखाएं भी न रह जाएं, लेकिन सुगंध फिर भी जीवन के मुक्‍त। आकाश में सदा बनी रहती है।

बुधवार, 26 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--18)-(भाग-2)

प्रार्थना: प्रेम की पराकाष्ठा—(प्रवचन—अट्ठारवां)



पहला प्रश्न :


बुद्ध बातें करते हैं होश की, जागने की, और आप बीच-बीच में मस्ती, नशा, शराब और लीनता की बातें भी उठाया करते हैं। बुद्ध पर बोलते समय विपरीत की चर्चा क्यों आवश्यक है? कृपया समझाएं।



      दृष्‍टि न हो, तो विपरीत दिखाई पड़ता है। दृष्टि हो, तो जस भी विपरीत दिखाई न पड़ेगा। जिसको बुद्ध होश कहते हैं, उसी को सूफियों ने बेहोशी कहा। जिसको बुद्ध अप्रमाद कहते हैं, उसी को भक्तों ने शराब कहा। बुद्ध के वचनों में और उमर खैयाम में इंचभर का फासला नहीं। बुद्ध ने जिसे मंदिर कहा है, उसी को उमर खैयाम ने मधुशाला कहा। बुद्ध तो समझे ही नहीं गए उमर खैयाम भी समझा नहीं गया। उमर खैयाम को लोगों ने समझा कि शराब की प्रशंसा कर रहा है।


      कुछ अपनी करामात दिखा ए साकी

      जो खोल दे आंख वो पिला ए साकी

      होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या

      दीवाने को होशियार बना ए साकी

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--17)-(भाग2)

प्रार्थना स्वयं मंजिल—(प्रवचन—सत्रहवां)



सारसूत्र:


 न परेस विलोमनि न परेस कताकतं।

अत्‍तनो’ वअवेक्‍खेय्य कतानि अकतानि च।।44।।


यथापि रूचिरं पुष्‍फं वण्‍णवंतं अगंधकं।

एवं सुभाषिता वाचा अफला होति अकुब्‍बतो।।45।।


यथापि रूचिरं पप्‍फं वण्‍णवंतं सगंधकं।

एवं सुभाषिता वाचा सफला होती कुब्‍बतो।।46।।


यथापि पुप्‍फरासिम्‍हा कयिरा मालागुणे बहु।

एवं जातेन मच्‍चेन कत्‍तव्‍वं कुसलं।।47।।


न पुप्‍फगंधो पटिवातमेति न चंदनं तगरं मल्‍लिका वा।

सतज्‍व गंधो पटिवातमेति सब्‍बा दिसा सप्‍पुरिसो पवाति।।48।।

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--16)-(भाग-2)

समझ और समाधि के अंतरसूत्र—(प्रवचन—सौहलवां)




पहला प्रश्न :


      महाकाश्यप उस दिन सुबह खिलखिलाकर न हंसा होता, तो भी क्या बुद्ध उसे मौन के प्रतीक फूल को देते?


प्रश्‍न पूछते समय थोड़ा सोचा भी करें कि प्रश्न का सार क्या है। यदि ऐसा हुआ होता! यदि वैसा हुआ होता! इन सारी बातों में क्यों व्यर्थ समय को व्यतीत करते हो?

      महाकाश्यप न हंसा होता तो बुद्ध फूल देते या न देते, इससे तुम्हें क्या होगा?

      महाकाश्यप न भी हुआ हो, हुआ हो, कहानी सिर्फ कहानी हो, तो भी तुम्हें क्या होगा? कुछ अपनी पूछो। कुछ ऐसी बात पूछो जो तुम्हारे काम पड़ जाए। प्रश्न ऐसे न हों कि सिर्फ मस्तिष्क की खुजलाहट हों, क्योंकि खुजलाहट का गुण है जितना खुजाओ बढ़ती चली जाती है।

पूछने के लिए ही मत पूछो। अगर न हो प्रश्न तो पूछो ही मत। चुप बैठेंगे, शायद तुम्हारे बीच कोई महाकाश्यप हंस दे।

      हंसना न हंसना महत्वपूर्ण नहीं है। बाहर जो घटता है उसका कोई मूल्य बुद्धपुरुषों के लिए नहीं है। फूल तो महाकाश्यप को दिया ही होता। वह अकेला ही था वहा जो बुद्ध के मौन को समझ सकता था। हर हालत में फूल उसके पास गया होता। बुद्ध न देते तो भी गया होता। छोड़ दो फिकर! हंसता नहीं, बुद्ध न भी देते फूल, तो भी मैं कहता हूं? उसी के पास गया होता। फूल खुद चला गया होता। कोई बुद्ध को देने की जरूरत भी न थी।

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--15)-(भाग-2)

केवल शिष्य जीतेगा—(प्रवचन—पंद्रहवां)



सारसूत्र:


को इमं पठविं विजेस्सति यमलोकज्‍च इमं सदेवकं।

को धम्मपद सुदेसितं कुसलो पुप्‍फमिव पचेस्सति।।39।।


सेखो पठविं विजेस्सति यमलोकज्‍च इमं सदेवकं।

सेखो धम्मपद सुदेसित कुसलो पुप्‍फमिव पचेस्सतिा।।40।।


फेणूपमं कायमिमं विदित्वा मरीचिधम्मं अभिसम्‍बुधाना।

छेत्वान मारस्स पुपुप्‍फ अदस्‍सनं मच्‍चुराजस्‍स गच्छे।।41।।


पुप्‍फ हेव पचिनतं व्यासत्तमनसं नरं।

सुत्‍तं गामं महोघोव मच्चु आदाय गच्छति।।42।।


यथापि भमरो पुप्‍फं वण्णगन्‍धं उहेठयं।

पलेति रसमादाय एवं गामे मुनिचरे।।43।।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो (प्रवचन- १४)-(भाग-2)

 अनंत छिपा है क्षण में—(प्रवचन—चौहदवां)





 पहला प्रश्न :


आप श्रद्धा, प्रेम, आनंद की चर्चा करते हैं, लेकिन आप शक्ति के बारे में क्यों नहीं समझाते? आजकल मुझमें असह्य शक्ति का आविर्भाव हो रहा है। यह क्या है और इस स्थिति में मुझे क्या रुख लेना चाहिए?


शक्‍ति की बात करनी जरूरी ही नहीं। जब शक्ति का आविर्भाव हो तो प्रेम में उसे बांटो, आनंद में उसे ढालो। उसे दोनों हाथ उलीचो।

      शक्ति के आविर्भाव के बाद अगर उलीचा न, अगर बांटा न, अगर औरों को साझीदार न बनाया, अगर प्रेम के गीत न गाए, उत्सव पैदा न किया जीवन में, तो शक्ति बोझ बन जाएगी। तो शक्ति पत्थर की तरह छाती पर बैठ जाएगी। फिर शक्ति से समस्या उठेगी।

सोमवार, 30 मार्च 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो -- (प्रवचन-13)-(भाग-2)

अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान—(प्रवचन—तेहरवां)




सारसूत्र-



अनवस्‍सुतचित्‍तस्‍स अनन्‍वाहतचेतसो।
पुज्‍जपापपहीनस्‍स नत्‍थि जागरतो भयं।।34।।
कुम्‍भूपमं कायमिमं विदित्‍वा नगरूपमं चित्‍तमिदं ठपेत्‍वा।
योधेथ मारं पज्‍जायुधेन जितं च रक्‍खे अनिवेसनोसिया।।35।।
अचिरं वत’ यं कायो पठविं अधिसेस्‍सति।
छुद्धो अपेतविज्‍जाणो निरत्‍थं व कलिड्गरं।।36।।
दिसो दिसं यन्‍तं कयिरा वेरी व पन वेरिन।
मिच्‍छापणिहितं चितं पापियों नं ततो करे।।37।।
न तं माता-पिता कयिरा अज्‍जे वापि च जातका।
सम्‍माणिहितं चितं सेरूयसो नं ततो करे।।38।।




दुनिया है तहलके में तो परवा न कीजिए
यह दिल है रूहे-अस्र का मसकन बचाइए
दिल बुझ गया तो जानिए अंधेर हो गया
एक शमा आंधियों में है रोशन बचाइए 

बुधवार, 25 मार्च 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो--(प्रवचन-12)-(भाग-2)


उठो. तलाश लाजिम है—(प्रवचन—बारहवां)




पहला प्रश्‍न:

 
जीवन विरोधाभासी है, असंगतियों से भरा है, तो फिर तर्क, बुद्धि, व्यवस्था और अनुशासन का मार्ग बुद्ध ने क्यों बताया?

प्रश्‍न जीवन का नहीं है। प्रश्न तुम्हारे मन का है। जीवन को मोक्ष की तरफ नहीं जाना है। जीवन तो मोक्ष है। जीवन नहीं भटका है, जीवन नहीं भूला है। जीवन तो वहीं है जहां होना चाहिए। तुम भटके हो, तुम भूले हो। तुम्हारा मन तर्क की उलझन में है। और यात्रा तुम्हारे मन से शुरू होगी। कहां जाना है, यह सवाल नहीं है। कहां से शुरू करना है, यही सवाल है।
मंजिल की बात बुद्ध ने नहीं की। मंजिल की बात तुम समझ भी कैसे पाओगे? उसका तो स्वाद ही समझा सकेगा। उसमें तो डूबोगे, तो ही जान पाओगे। बुद्ध ने मार्ग की बात कही है। बुद्ध ने तुम जहां खड़े हो, तुम्हारा पहला कदम जहां पड़ेगा, उसकी बात कही है। इसलिए बुद्ध बुद्धि, विचार, अनुशासन, व्यवस्था की बात नही कि उन्हें पता नहीं है कि जीवन कोई व्यवस्था नहीं मानता।

मंगलवार, 24 मार्च 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो--(प्रवचन-11)-(भाग-2)

तथाता में है क्रांति—(प्रवचन—ग्‍याहरवां)




सारसूत्र:




फन्दनं चपलं चितं दूरक्‍खं दुन्‍निवारयं।
उजुं करोति मेधावी व उसुकारो‘ व तेजनं।।29।।


वारिजो' व क्ले कित्तो ओकमोकत-उव्भतो।
परिफन्दतिदं चित्तं मारधेथ्यं पहातवे।।30।।


दुन्‍निग्‍गहस्‍स लहुनो यत्थकाम निपातिनो।
चित्‍तस्‍स दमथो साधु चितं दन्‍तं सुखावहं।।31।।


दूरड्गम एकचरं असरीरं गुहासयं।
ये चित्तं सज्जमेस्सन्ति मोक्खन्ति मारबन्‍धना।।32।।


अनवट्ठित चित्तस्स सद्धम्मं अविजानतो।
परिप्लवपसादस्स पज्जा न परिपूरति।।33।।

ओशो एस धम्मो सनंतनो भाग 2




ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्‍मपद पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों का संकलन)

जो गीत तुम्‍हारे भीतर अनगाया पडा है। उसे गाओ। जो वीणा तुम्‍हारे भीतर सोई हुई पड़ी है छेड़ो उसके तारों को। जो नाच तुम्‍हारे भीतर तैयार हो रहा है, उसे तुम बोझ की तरह मत ढोओ। उसे प्रगट हो जाने दो। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति अपने भीतर बुद्धत्‍व को लेकर चल रहा है। जब तक वह फूल न खिले,तब तक बेचैनी रहेगी, संताप रहेगा। वह फूल खिल जाए, निर्वाण है। सच्‍चिदानंद है, मोक्ष है।

गीता में कृष्ण सारथी हैं। अर्थ है कि जब चैतन्य हो जाए सारथी, तुम्हारे भीतर जो श्रेष्ठतम है जब उसके हाथ में लगाम आ जाए। बहुत बार अजीब सा लगता है कृष्ण को सारथी देखकर। अर्जुन ना-कुछ है अभी, वह रथ में बैठा है। कृष्ण सब कुछ है, वे सारथी बने हैं। पर प्रतीक बड़ा मधुर है। प्रतीक यही है कि तुम्हारे भीतर जो ना-कुछ है वह सारथी न रह जाए; तुम्हारे भीतर जो सब कुछ है वही सारथी
तुम्‍हारी हालत उलटी है। तुम्हारी गीता उलटी है। अर्जुन सारथी बना बैठा है। कृष्ण रथ में बैठे हैं। ऐसे ऊपर से लगता है-मालकियत, क्योंकि कृष्ण रथ में बैठे हैं और अर्जुन सारथी है। ऊपर से लगता है, तुम मालिक हो। ऊपर से लगता है, तुम्हारी गीता ही सही है। लेकिन फिर से सोचना, व्यास की गीता ही सही है। अर्जुन रथ में होना चाहिए। कृष्ण सारथी होने चाहिए। मन रथ में बिठा दो, हर्जा नहीं है। लेकिन ध्यान सारथी बने, तो एक मालकियत पैदा होती है।




ओशो एस धम्मो सनंतनो भाग 2

ओशो - एस धम्मो सनंतनो (प्रवचन- 10) (भाग 1)


देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है—(प्रवचन—दसवां)





पहला प्रश्न:



भगवान, एक ही आरजू है कि इस खोपड़ी से कैसे मुक्ति हो जाए? आपकी शरण आया हूं।


पूछा है चिन्मय ने।
खोपड़ी से मुक्त होने का खयाल भी खोपड़ी का ही है। मुक्त होने की जब तक आकांक्षा है, तब तक मुक्ति संभव नहीं। क्योंकि आकांक्षा मात्र ही, आकांक्षा की अभीप्सा मन का ही जाल और खेल है। मन संसार ही नहीं बनाता, मन मोक्ष भी बनाता है। और जिसने यह जान लिया वही मुक्त हो गया।

साधारणतः ऐसा लगता है, मन ने बनाया है संसार, तो हम मन से मुक्त हो जाएं तो मुक्त हो जाएंगे। वहीं भूल हो गयी। वहीं मन ने फिर धोखा दिया। फिर मन ने चाल चली। फिर मन ने जाल फेंका। फिर तुम उलझे। फिर नया संसार बना। मोक्ष भी संसार बन जाता है।
संसार का अर्थ क्या है? जो उलझा ले। संसार का अर्थ क्या है? जो अपेक्षा बन जाए, वासना बन जाए। संसार का अर्थ क्या है? जो तुम्हारा भविष्य बन जाए। जिसके सहारे और जिसके आसरे और जिसकी आशा में तुम जीने लगो, वही संसार है। दुकान पर बैठे हो, इससे संसार में हो; मंदिर में बैठ जाओगे, संसार के बाहर हो जाओगे--इतनी सस्ती बातों में मत पड़ जाना।
काश, इतना आसान होता! तब तो कुछ उलझन न थी। दुकान में संसार नहीं है, और न मंदिर में संसार से मुक्ति है। अपेक्षा में, आकांक्षा में, आशा में संसार है; सपने में संसार है। तो तुम मोक्ष का सपना देखो, तो भी संसार में हो।

ओशो - एस धम्मो सनंतनो (प्रवचन-9) (भाग-1)

यात्री, यात्रा, गंतव्य: तुम्हीं—(प्रवचन—नौवां)





सूत्र:


मा प्रमादमनुयुग्चेथ मा कामरतिसंथवं।
अप्पमत्तो हि झायंतो पप्पोति विपुलं सुखं।।24।।


पमादं अप्पमादेन यदा नुदति पंडितो।
पग्भपासादमारुयूह असोको सोकिनिं पजं।
पब्बतट्ठो' व भूमट्ठे धीरो बाले अवेक्खति।।25।।



अप्पमत्तो पमत्तेसु सुत्तेसु बहुजागरो।
अबलस्सं' व धीघस्सो हित्वा याति सुमेधसो।।26।।



अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा।
सग्जोजनं अपुं थूलं डहं अग्गी' व गच्छति।।27।।


अप्पमादरतो भिक्खु पमादे भयदस्सि वा।
अभब्बो परिहानाय निब्बानस्सेव संतिके।।28।।








ढूंढ़ता फिरता हूं ऐ इकबाल अपने आपको
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं

रविवार, 22 मार्च 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो (प्रवचन- 8) (भाग 1)

प्रेम है महामृत्यु—(प्रवचन—आठवां)



 

पहला प्रश्न:



दुनिया के ज्यादातर धर्मगुरुओं ने अपने स्त्री-पुरुष संन्यासियों को हो सके उतनी दूरी रखने के नियम दिए; पर आप हमेशा दोनों के प्रेम पर ही जोर देते हैं। क्या आप प्रेम का कुछ विधायक उपयोग करना चाहते हैं? या उसकी निरर्थकता का हमें अनुभव कराना चाहते हैं?
प्रेम को समझना जरूरी है।
 
जीवन की ऊर्जा या तो प्रेम बनती है, या भय बन जाती है। दुनिया के धर्मगुरुओं ने आदमी को भय के माध्यम से परमात्मा की तरफ लाने की चेष्टा की है। पर भय से भी कहीं कोई आना हुआ है? भय से भी कहीं कोई संबंध बनता है? भय से घृणा हो सकती है, भय से प्रतिरोध हो सकता है; लेकिन भय से मुक्ति नहीं हो सकती। भय तो जहर है, फिर परमात्मा का ही क्यों न हो।

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो (प्रवचन- 7) (भाग- 1)

जागकर जीना अमृत में जीना है—(प्रवचन—सातवां)



अप्पमादो अमतपदं पमादो मच्चुनो पदं।

अप्पमत्ता न मीयंति ये पमत्ता यथा मता।।18।।


एतं विसेसतो भ्त्वा अप्पमादम्हि पंडिता।

अप्पमादे पमोदंति अरियानं गोचरे रता।।19।।


ते झायिनो साततिका निच्चं दल्ह-परक्कमा।

फुसंति धीरा निब्बानं योगक्खेमं अनुत्तरं।।20।।



उट्ठानवतो सतिमतो सुचिकम्मस्स निसम्मकारिनो।

सग्भ्तस्स च धम्मजीविनो अप्पमत्तस्स यसोभिङ्ढति।।21।।


उट्ठानेनप्पमादेन सग्भ्मेन दमेन च।

दीपं कयिराथ मेधावी यं ओधो नाभिकीरति।।22।।


पमादमनुग्भ्न्ति बाला दुम्मेधिनो जना।

अप्पमादग्च मेधावी धनं सेट्ठं' व रक्खति।।23।।


जफर ने गाया है--

उम्रे-दराज मांगकर लाए थे चार दिन

दो आरजू में कट गए दो इंतजार में