सोमवार, 11 सितंबर 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--33)-(भाग-4)

एकला चलो रे—(प्रवचन—तैतीसवां)



सारसूत्र:


ये चखो सम्‍मदक्‍खाने धम्‍मे धम्‍मानुवत्‍तिनो ।

ते जना पारमेस्‍सन्‍ति मच्‍युधेय्यं सुदुत्‍तरं ।।77।।


कण्‍हं धम्‍मं विप्‍पहाय सुक्‍कं भविथ पंड़ितो ।

ओका अनौकं आगम्‍म विवेके यत्‍थ दूरमं ।।78।।


तत्रभिरतिमिच्‍छेय्य हित्‍वा कामे अकिंचनो ।

परियोदपेय्य अत्‍तनं चित्‍तक्‍लेसेहि पंड़िता ।।79।।


ये सं सम्‍बोधि-अड्गे सु समा चितं सुभावितं ।

आदान-परिनिस्‍सग्‍गे अनुपादाय ये रता।

रवीणासवा जुतीमंतो ते लोके परिनिब्‍बुता ।।80।।

बुधवार, 6 सितंबर 2023

ओशो - एस धम्‍मो सनंतनो--(प्रवचन--32)-(भाग-4)

तू आप है अपनी रोशनाई—(प्रवचन—बत्‍तीसवां)




पहला प्रश्‍न—


मेरी समझ में कुछ नहीं आता। कभी लगता है कि पूछना क्या है, सब ठीक है; और कभी प्रश्न ही प्रश्न सामने होते हैं।


समझ की बहुत बात भी नहीं। समझने का बहुत सवाल भी नहीं। जो समझने में ही उलझा रहेगा, नासमझ ही बना रहेगा।

      जीवन कुछ जीने की बात है, स्वाद लेने की बात है। समझ का अर्थ ही होता है कि हम बिना स्वाद लिए समझने की चेष्टा में लगे हैं, बिना जीए समझने की चेष्टा में लगे हैं। बिना भोजन किए भूख न मिटेगी। समझने से कब किसकी भूख मिटी? और भूख मिट जाए तो समझने की चिंता कौन करता है!


      आदमी ने एक बड़ी बुनियादी भूल सीख ली है—वह है, जीवन को समझ के द्वारा भरने का। जीवन कभी समझ से भरता नहीं; धोखा पैदा होता है।

      प्रेम करो तो प्रेम को जानोगे। प्रार्थना करो तो प्रार्थना को जानोगे।

      अहंकार की सीढ़िया थोड़ी उतरो तो निरहंकार को जानोगे।

      डूबो, मिटो, तो परमात्मा का थोड़ा बोध पैदा होगा।