रविवार, 9 फ़रवरी 2020

ओशो - मन ही पूजा मन ही धूप (संत रैदास)-प्रवचन-1

आग के फूल—(पहला प्रवचन)




सूत्र:


बिनु देखे उपजै नहि आसा। जो दीसै सो होई बिनासा।।


बरन सहित जो जापै नामु। सो जोगी केवस निहकामु।।


परचै राम रवै जो कोई। पारसु परसै ना दुबिधा होई।।


सो मुनि मन की दुबिधा खाइ। बिनु द्वारे त्रैलोक समाई।।

ओशो मन ही पूजा मन ही धूप



 भारत का आकाश संतों के सितारों से भरा है। अनंत—अनंत सितारे हैं, यद्यपि ज्योति सबकी एक है। संत रैदास उन सब सितारों में ध्रुवतारा हैं— इसलिए कि शूद्र के घर में पैदा होकर भी काशी के पंडितों को भी मजबूर कर दिया स्वीकार करने को। महावीर का उल्लेख नहीं किया ब्राह्मणों ने अपने शास्त्रों में। बुद्ध की जड़ें काट डालीं, बुद्ध के विचार को उखाड़ फेंका। लेकिन रैदास में कुछ बात है कि रैदास को नहीं उखाड़ सके और रैदास को स्वीकार भी करना पड़ा।
ब्राह्मणों के द्वारा लिखी गई संतों की स्मृतियों में रैदास सदा स्मरण किए गए। चमार के घर में पैदा होकर भी ब्राह्मणों ने स्वीकार किया— —वह भी काशी के ब्राह्मणों ने! बात कुछ अनेरी है, अनूठी है।

महावीर को स्वीकार करने में अड़चन है, बुद्ध को स्वीकार करने में अड़चन है। दोनों राजपुत्र थे जिन्हें स्वीकार करना ज्यादा आसान होता। दोनों श्रेष्ठ वर्ण के थे, दोनों क्षत्रिय थे। लेकिन उन्हें स्वीकार करना मुश्किल पड़ा।

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

ओशो - एस धम्मो सनंतनो-(प्रवचन-5)-(भाग- 1)

बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का—(प्रवचन—पांचवां)




इध सोचति पेच्च सोचति पापकारी उभयत्थ सोचति।

सो सोचति सो विहग्भ्ति दिस्वा कम्मकिलिट्ठमत्तनो।।13।।

इध मोदति पेच्च मोदति कतपुग्भे उभयत्थ मोदति।

सो मोदति सो पमोदति दिस्वा कम्मविसुद्धिमत्तनो।।14।।


इध तप्पति पेच्च तप्पति पापकारी उभयत्थ तप्पति।

पापं मे कतन्ति तप्पति भीय्यो तप्पति दुग्गतिङ्गतो।।15।।



बहुम्पि चे सहितं भासमानो न तक्करो होति नरो पमत्तो।

गोपो' व गावो गणयं परेसं न भागवा सामग्भ्स्स होति।।16।।


अप्पम्पि चे सहितं भासमानो धम्मस्स होति अनुधम्मचारी।

रागग्च दोसग्च पहाय मोहं सम्मप्पजानो सुविमुत्तचित्तो।

अनुपादियानो इध वा हुरं वा स भागवा सामग्भ्स्स होति।।17।।